Wednesday, September 9, 2009

बाबू दरबारीलाल जी ने डी ऐ वी आन्दोलन और आर्य समाज के क्षेत्र में ४७ वर्षो तक उल्लेखनीय कार्य किए है और ऐसा वह इस लिए कर पाए क्योकि उनकी आत्मा में पूर्वजन्मो के दिव्य संस्कार थे या यूं कहा जा सकता है कि वें जो इतने विलक्ष्ण कार्य कर पाए वे उनकी दिव्यता से ही सम्भव हो पाए ।

दिव्य लोगो का अवतरण महत्वपूर्ण कार्य करने के लिए ही समय समय इस धरा पर होता है .ऐसे दिव्य पुरूष का स्मरण करना स्वयम भी दिव्य कर्म करने की एक प्रक्रिया है और स्वयम शुभ कर्मो की वृद्धि का आधार है

Sunday, September 6, 2009

बाबू जी की असामान्यता

तो आओं पहले यह विचार करले कि व्यक्ति मे सामान्यता और असामान्यता होती कैसे है
मूलतःहम जिए जा रहे जीवन को ,एक विशेष स्तर पर जीते है जिसको हम जी रहे है ,उस जीते समय के भावः ,दृष्टि वे सब हमारी अंतरात्मा को प्रभावित करते और उसी प्रभाव के बल पर हम सामान्य से उठकर समाज के लिए कुछ विशेष कर जाते है [हम कर्म कैसे करते,है इस संदर्भ मे इसी ब्लांग में पठनीय है ईश्वर का चमत्कार ]

इस समाज में कुछ लोग बहुत परिश्रम करते है पर स्वयम अपने लिए या समाज के लिए कुछ भी उल्लेखनीय नही करपाते या यूं कहूँकि उनके द्वारा किए गए कार्य का महत्व समाज में दीखता नही है यह शायद इसलिए होता होगा क्योकि इनके साथ इनके पूर्व जन्म का कोई सुकर्म अधिकता से सामने नही आ पाता हो, हाँ यह तो निश्चित है कि इनके चित्त में शुभ कर्मो की वृद्धि हुई हो और अच्छे प्रारब्ध का निर्माण हुआ हो ,अगले जन्म में अच्छे व सार्थक कर्म करने का अवसर मिले
लेकिन कुछ विशेष आत्माए ,परमात्मा की विशेष कृपा से अपने प्रारब्ध के शुभ कर्मो के कारण समाज के लिए कुछ ऐसा उल्लेखनीय कर जाती है जिस पर आश्चर्य होता है कि आख़िर एक व्यक्ति ऐसा उल्लेखनीय कार्य कैसे कर सकता है लेकिन ऐसा उल्लेखनीय कार्य उसी के द्वारा हो सकता है जिसकी आत्मा में ,तेजस्विता हो ,शुभ संस्कारो की अधिकता हो और बाह्य [स्थूल शरीर और ,सूक्ष्म शरीर ]की भी पवित्रता हो ,जिसका आभा मंडल दिव्य हो तो उनके द्वारा किए गए हर कार्य समाज की उन्नति के लिए ही होते है जिन कार्यो पर चलकर सामान्य जन भी अपनी उन्नति के कार्य कर लेते है वे ही महापुरुष आगे आने वाली पीढी के लिए पूजनीय हो जाते है किसी भी महान पुरूष के जीवन दर्शन और उनके कार्यो का स्मरण करने से हमारे अन्दर भी महानता के गुणों की वृद्धि होती है
पूज्य बाबू दरबारी लाल जी के द्वारा डी ऐ वी आन्दोलन और आर्य समाज के लिए किए गए ४७ वर्षो के सतत उत्कृष्ट महनीय योगदान के लिए स्मरण करना हमारे ही गुणों की वृद्धि करेगा और यह स्मरण उस दिव्य महापुरूष के८० वे जन्मोत्सव पर एक भव्य और गरिमामय कार्यक्रम आयोजित करने से बहुत ही उपयुक्त होगा और ऐसा करना हमारी नैतिक जिम्मेदारी भी है
चले है कदम, जिस राह पर तुम्हारे
कदमो को हम भी, उधर ले चलेगे
पता है ,आप साथ तो नही होंगें हमारे
पर, आपके साथ होने का ,अहसास तो कर सकेंगे

Friday, September 4, 2009

बाबू जी के जीवन की तेजस्विता

डी ए वी आन्दोलन के शिखर पुरुष और आर्य समाज के देदीप्यमान नक्षत्र बाबू दरबारीलाल जी, जिन्होंने अपने जीवन के ६५ वर्षो में से ४७ वर्ष डी ए वी आन्दोलन के उस वटवृक्ष को सींचने में लगा दिए जिसे स्वामी दयानंद की स्मृति में स्थापित किया गया था जो महात्मा हंसराज के तप से सनाथ था
उसी सामाजिक उत्थान के लिए समर्पित शैक्षिक दृष्टि से महत्वपूर्ण डी ए वी आंदोलन को अपनी तेजस्विता से सतत ४७ वर्षो तक सींचित करके विस्तारित करने वाले पूज्य बाबू दरबारीलाल जी के अस्सी वें जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में उस महामानव के प्रति नमन करने की जिम्मेदारी हर उस मानव की है जो उनके इस चुम्बकीय व्यक्तित्व और महनीय प्रभा से प्रभावित है ,जो यह समझता है कि मेरे द्वारा किए जा रहे कार्यो को या जिस कार्य को मैं कर रहा हूँ उसकी नीव उसी दिव्य प्रभा से युक्त महामानव ने रखी थी ,जो डी ए वी आन्दोलन और आर्य समाज के क्षेत्र में उनके द्वारा किए गए महान योगदान के प्रति कृतज्ञता से युक्त है जो उनके व्यक्तित्व में उस स्वरूप को आंकलित करने का सामर्थ्य रखता है कि हाँ बाबू जी के व्यक्तित्व में तेजस्विता का अजस्रस्रोत विद्यमान था
आओं पहले बाबू जी के व्यक्तित्व की तेजस्विता का दर्शन करले
स्वतंत्रता की खुशी से ज्यादा विभाजन की त्रासदी ने डी ए वी आन्दोलन को ज्यादा क्षति पहुचाई ,पर ईश्वर के चमत्कार अद्भुत होते है डी ए वी आन्दोलन के महानायक महात्मा हंसराज जी की मृत्यु सन १९३८ में हुई और उससे ८ वर्ष पूर्व ही बाबू दरबारी लाल जी १५.०१.१९३० में जन्म ले चुके थे ग्रामीण अंचल में पढाई की व्यवस्था तो आज भी ठीक नही है पर उस समय की स्थिति का तो हम आज भी अनुमान कर सकते है की कितनी बुरी हो होगी ,पर व्यवस्था ठीक न होने पर भी साधन के आभाव मे प्रतिभा का रास्ता आज तक भला कोई रोक पाया है पर बाबू जी तो कक्षा ४ और५ वी से ही अच्छे अंको से उत्तीर्ण होकर छात्रवृति प्राप्त करते हुए शिक्षा के प्रति अपने रुझान को व्यक्त कर चुके थे, आजादी के प्रभाव से सेना में जाने की कोशिश करना, माता पिता के मना करने पर ऐसा न करना या ईश्वर के द्वारा सामाजिक उन्नति के लिए डी ए वी आन्दोलन को सीचने के लिए सुरक्षित रखना यह तो सही रूप से ईश्वर ही जाने
पर २६ ०८ .१९४८ को वह स्वर्णिम दिन आ ही गया जब यह महामानव डी ए वी आन्दोलन की लता को, जो विभाजन की त्रासदी से मुरझा रही थी, उसे सीचने और उस बेल को विभिन्न स्थानों पर रोपने के लिए ,उस का हिस्सा बन चुका था १९४८ से लेकर १९९५तक लगातार ४७ वर्षो तक डी ऐ वी आन्दोलन और आर्य समाज की उन्नति के लिए ,न रात देखी और न दिन देखा, बस एक ही धुन थी की इस आन्दोलन को कितना शिखर तक ले जा सकता हूँ पुत्र की तरह इस संस्था का पालन किया वह तो ईश्वर की नियति को स्वीकार्य नही था अन्यथा यह आन्दोलन आज पता नहीं कितनी ऊंचाई पर होता ,

बाबू जी की उपस्थिति में डी ऐ वी परिवार की संख्या ८० से बढ़कर ६०० हो गई साथ ही आर्य प्रतिनिधि सभा के अंतर्गत आर्य समाजो की संख्या में भी अत्यधिक वृद्धि हुई पर क्या ऐसा चमत्कार ,ऐसा विलक्ष्ण कार्य एक सामान्य व्यक्ति कर सकता है. संभवत नहीं ,तो निश्चित ही बाबू दरबारी लाल जी एक सामान्य नही असामान्य व्यक्ति थे तो आओं पहले बाबू जी की असामान्यता के दर्शन करले

Thursday, August 27, 2009

ईश्वर का चमत्कार

रात और दिन सृष्टि के स्वरूप को व्यक्त करते है दिन ,जिसमे हम कर्म करते है और रात जिसमे हम विश्राम करतेहै ऐसे ही यह सृष्टि का स्वरूप है सृष्टि का जब सृजन होता है तो आत्माएं अपना शरीर धारण करके अपना कर्म करती है और जब सृष्टि का विलय हो जाता है तो आत्मा शरीर धारण करने में असमर्थ हो जाती है सृष्टि के सृजन और विलय का बहुत लंबा काल है चर्चा सृजन के काल की ही अपेक्षित है
आत्मा जब शरीर धारण करती है तो उसके साथ तीन शरीर होते है
१ कारण शरीर
२ सूक्ष्म शरीर
३ स्थूलशरीर
आत्मा इन तीन शरीरो के द्वारा ही अपना कर्म करने के लिए यहाँ आती है मोक्ष के बाद जब आत्मा सबसे प्रथम शरीर धारण करती है तो उसका कारण तो वह परमपिता परमात्मा ही जानता है या उसकी व्यवस्था हैं
लेकिन फ़िर उसके[आत्मा के ] शरीर धारण करने के जो भी कारण होते है वे उसके कर्म ही होते है और कर्म की तीन ही स्थितिया होती है
1 प्रारब्ध कर्म
२क्रियमाण कर्म
३सन्चित कर्म
हमारा यह जो जीवन चल रहा है इसका कारण हमारा प्रारब्ध कर्म अर्थात पिछले जन्म या उससे भी पिछले जन्मो मे किए कर्मो का प्रभाव और हम जो कर्म आज कर रहे है उस कर्म को क्रियमाण कर्म कहा जाता है और किए जा रहे कर्म ही हमारे संचित कर्मो का कारण बनते है
तो जो आज हम दिख रहे है उसका मूल कारण हमारा प्रारब्ध ही है एक शरीर धारी आत्मा जो महत्वपूर्ण कार्य करती है उसको करने मे उसके प्रारब्ध के शुभ कर्मो का ही योगदान है और संभवत यही चमत्कार ईश्वर का है की वह अपनी सृष्टि के सम्वर्धन के लिए आत्मा के शुभ कर्मो को एकत्रित करके एक ऐसा जीवन जीने का कारण पैदा कर देता है जिस पर अनेको लोग चलकर अपने जीवन से शुभ कर्म कर लेते है
पूज्य बाबू दरबारी लाल जी भी एक ऎसी ही पवित्र आत्मा थे जिन्होंने आपने जीवन के ६५ वर्षो मे से ४७ वर्ष उस मिशन की उन्नति और विस्तार मे लगा दिए जो महर्षि दयानंद की स्मृति में था जो महात्मा हंसराज के तप से तपा हुआ था

Wednesday, August 26, 2009

दिव्यता का प्रभाव

इस धरती पर जन्म लेने वाले कुछ ऐसे पुरूष होते है जो अपनी आध्यात्मिक शक्ति से इस धरा पर कुछ ऐसे विलक्षण कार्य करके चले जाते है जिस पर चलकर जनमानस भी अपने जीवन में कुछ उल्लेखनीय कार्य कर जाते है बाबू दरबारीलाल जी भी एक ऐसी ही विलक्षणता से युक्त थे जिनकी आध्यात्मिकता ने उनके जीवन से एक ऐसा कार्य करवाया जिस पर श्रद्धा से शत शत बार शीश नवाने को मन करता है
आख़िर बाबू जी के जीवन में जो दिव्यता मुझे दिखाए दे रही है आओं उसका विश्लेषण करले; लेकिन उससे पहले यह जानना आवश्यक है कि आख़िर मनुष्य में दिव्यता का प्रभाव दीखता कैसे है ;

Wednesday, July 29, 2009

जन्मोत्सव पर स्मरण

हे महामानव हम तेरा ,अभिनन्दन करते है
शीश नवाकर तव चरणों में वंदन करते है
डी ऐ वी की अमरबेल को तुमने सींचा है
जीवन के हर क्षण मे तुमने इसको पोषा है
डी ऐ वी की महिमा जब भी जन- जन गायेगा
भगवन महिमा योगदान की पग -पग पायेगा



बाबू दरबारी लाल जी के अस्सी वे [८०] जन्मोत्सव के आयोजन के सन्दर्भ में उन सभी महानुभावो से प्रार्थना है जो यह महसूस करते है कि हाँ बाबूदरबारी लाल जी के व्यक्तित्व में महानता के वे गुण विद्यमान है जिनके प्रति श्रद्धा से नमन किया जा सकता है और हाँ उनके जन्मोत्सव १५ /०१ /२०१० पर एक गरिमामय कार्यक्रम का आयोजन करके डी ऐ वी आन्दोलन के महान नेता और आर्य समाज के क्षेत्र में किए गये उनके महान योग दान के लिए नमन किया जा सके
जन्मदिवस की बेला पर हम पुष्प करो में लाये है
तव सम्मुख रख श्रध्दा अपनी अर्पित करने आयेहै
कार्यक्रम के स्वरूप पर भी विचार आमंत्रित है
स्मारिकामें उनके प्रति आपके लेखो का भी आमन्त्रण है