तो आओं पहले यह विचार करले कि व्यक्ति मे सामान्यता और असामान्यता होती कैसे है
मूलतःहम जिए जा रहे जीवन को ,एक विशेष स्तर पर जीते है जिसको हम जी रहे है ,उस जीते समय के भावः ,दृष्टि वे सब हमारी अंतरात्मा को प्रभावित करते और उसी प्रभाव के बल पर हम सामान्य से उठकर समाज के लिए कुछ विशेष कर जाते है [हम कर्म कैसे करते,है इस संदर्भ मे इसी ब्लांग में पठनीय है ईश्वर का चमत्कार ]
इस समाज में कुछ लोग बहुत परिश्रम करते है पर स्वयम अपने लिए या समाज के लिए कुछ भी उल्लेखनीय नही करपाते या यूं कहूँकि उनके द्वारा किए गए कार्य का महत्व समाज में दीखता नही है यह शायद इसलिए होता होगा क्योकि इनके साथ इनके पूर्व जन्म का कोई सुकर्म अधिकता से सामने नही आ पाता हो, हाँ यह तो निश्चित है कि इनके चित्त में शुभ कर्मो की वृद्धि हुई हो और अच्छे प्रारब्ध का निर्माण हुआ हो ,अगले जन्म में अच्छे व सार्थक कर्म करने का अवसर मिले
लेकिन कुछ विशेष आत्माए ,परमात्मा की विशेष कृपा से अपने प्रारब्ध के शुभ कर्मो के कारण समाज के लिए कुछ ऐसा उल्लेखनीय कर जाती है जिस पर आश्चर्य होता है कि आख़िर एक व्यक्ति ऐसा उल्लेखनीय कार्य कैसे कर सकता है लेकिन ऐसा उल्लेखनीय कार्य उसी के द्वारा हो सकता है जिसकी आत्मा में ,तेजस्विता हो ,शुभ संस्कारो की अधिकता हो और बाह्य [स्थूल शरीर और ,सूक्ष्म शरीर ]की भी पवित्रता हो ,जिसका आभा मंडल दिव्य हो तो उनके द्वारा किए गए हर कार्य समाज की उन्नति के लिए ही होते है जिन कार्यो पर चलकर सामान्य जन भी अपनी उन्नति के कार्य कर लेते है वे ही महापुरुष आगे आने वाली पीढी के लिए पूजनीय हो जाते है किसी भी महान पुरूष के जीवन दर्शन और उनके कार्यो का स्मरण करने से हमारे अन्दर भी महानता के गुणों की वृद्धि होती है
पूज्य बाबू दरबारी लाल जी के द्वारा डी ऐ वी आन्दोलन और आर्य समाज के लिए किए गए ४७ वर्षो के सतत उत्कृष्ट महनीय योगदान के लिए स्मरण करना हमारे ही गुणों की वृद्धि करेगा और यह स्मरण उस दिव्य महापुरूष के८० वे जन्मोत्सव पर एक भव्य और गरिमामय कार्यक्रम आयोजित करने से बहुत ही उपयुक्त होगा और ऐसा करना हमारी नैतिक जिम्मेदारी भी है
चले है कदम, जिस राह पर तुम्हारे
कदमो को हम भी, उधर ले चलेगे
पता है ,आप साथ तो नही होंगें हमारे
पर, आपके साथ होने का ,अहसास तो कर सकेंगे